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Thursday, October 2, 2014

सम्मानित जनो,
आज ही दिन पांच साल पहले ब्लागिंग शुरू की थी। इन पांच सालों में कितना अंतर आ गया है। आज ब्लागिंग के बजाय फेसबुक की ओर लोगों का अधिक रुझान रहने लगा है।
खैर... आज गांधी जयंती पर एक पुराना कताअ पेश है-

अहिंसा के मसायल पर रजा अपनी भी रखते हैं।
कोई बुजदिल समझ बैठे दवा इसकी भी रखते हैं।
हमारे सब्र की इक हद है इसको पार मत करना
हैं गांधी भी, मगर हम हाथ में लाठी भी रखते हैं।
                     -शाहिद मिर्जा शाहिद

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